Gangaur ki kahani : गणगौर का पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं. होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित और नवविवाहित महिलाएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं और चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं. इसके बाद दूसरे दिन शाम को उनका विसर्जन कर देती हैं. यह व्रत विवाहित महिलाएं पति का प्यार और स्नेह पाने के लिए करती हैं. इस व्रत को करने से कुवांरी लड़कियों को उत्तम पति मिलता है और सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है.
गणगौर की कहानी -1 Gangaur ki Kahani
एक बार भगवान शंकर पार्वती जी एवं नारदजी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए । वे चलते चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गाँव में पहुचे । उनका आना सुनकर ग्राम की निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए थालियो में हल्दी अक्षत लेकर पूजन हतु तुरतं पहुँच गई । पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिडक दिया । वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी । धनी वर्ग कि स्त्रियाँ थोडी देर बाद अनेक प्रकार के पकवान सोने चाँदी के थालो में सजाकर पहुँची। इन स्त्रियाँ को देखकर भगवान् शंकर ने पार्वती से कहा- ”तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया । अब इन्हें क्या दोगी“? पार्वतीजी बोली- प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थो से बना रस दिया गया हैं । इसलिए उनका रस धोती से रहेगा । परन्तु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रस दूँगी जो मेरे समान सौभाग्यवती हो जाएँगी ।
जब इन स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीरकर उस रक्त को उनके ऊपर छिडक दिया । जिस पर जैसे छीटें पडे उसने वैसा ही सुहाग पा लिया । इसके बाद पार्वती जी अपने पति भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई । स्नान करने के पश्चात् बालू की शिवजी की मूर्ति बनाकर पूजन किया । भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद खाकर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया- ”आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोंक्ष को प्राप्त होगा।“ भगवान शिव यह वरदान देकर अन्तर्धान हो गए । इतना सब करते करते पार्वती जी को काफी समय लग गया । पार्वतीजी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहाँ पर भगवान शंकर व नारदजी को छोडकर गई थी । शिवजी ने विलम्ब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली, ” मेरे भाई-भावज नदी किनारे मिल गए थे । उन्होने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया । इसी कारण से आने में देर हो गई।“ ऐसा जानकर अन्तर्यामी भगवान शंकर भी दूध भात खाने क लालच में नदी तट की ओर चल दिए । पार्वतीजी ने मौन भाव से भगवान शिवजी का ही ध्यान करके प्रार्थना की, ”भगवान आप अपनी इस अनन्य दासी की लाज रखिए।“ प्रार्थना करती हुई पार्वती जी उनके पीछे पीछे चलने लगी । उन्हे दूर नदी तट पर माया का महल दिखाई दिया । वहाँ महल के अन्दर शिवजी के साले तथा सहलज ने शिव पार्वती का स्वागत किया । वे दो दिन वहाँ रहे । तीसरे दिन पार्वती जी ने शिवजी से चलने के लिए कहा तो भगवान शिव चलने को तैयार न हुए । तब पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दी । ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव को भी पार्वती के साथ चलना पडा । नारदजी भी साथ चल दिए । चलते चलते भगवान शंकर बोले, ” मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया । माला लाने के लिए पार्वतीजी तैयार हुई तो भगवान ने पार्वतीजी को न भेजकर नारद जी को भेजा । वहाँ पहुचने पर नारद जी को कोई महल नजर नही आया । वहाँ दूर दूर तक जंगल ही जंगल था । सहसा बिजली कौंधी । नारदजी को शिवजी की माला एक पेड पर टंगी दिखाई दी । नारदजी ने माला उतारी और शिवजी के पास पहुँच कर यात्रा कर कष्ट बताने लगे । शिवजी हँसकर कहने लगे- यह सब पार्वती की ही लीला हैं । इस पर पार्वती जी बोली- मैं किस योग्य हूँ । यह सब तो आपकी ही कृपा हैं । ऐसा जानकर महर्षि नारदजी ने माता पार्वती तथा उनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना की मुक्त कंठ से प्रंशसा की ।
गणगौर की कहानी -2 Gangaur ki Kahani
राजा ने बोए जौ , चने और माली ने बोई दूब। राजा के जौ , चने बढ़ते जा रहे थे और माली की दूब घटती जा रही थी। माली को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है। इसलिए उसने सोचा छुपकर निगाह रखनी चाहिए। जब वह छुपकर देख रहा था तो उसने देखा कि कुछ छोटी-बड़ी लड़कियां उसकी दूब तोड़ कर ले जा रही हैं। उसे बहुत गुस्सा आया उसने लड़कियों को डाँटा और उनकी चुन्नी छीन ली। लड़कियाँ माली से विनती करने लगी कि हमारी चुन्नी दे दो और हमें दूब ले लेने दो हम यह दूब गणगौर की पूजा के लिए ले जा रहे हैं। इसके बदले गणगौर का पूजा पाटा हम तुम्हें दे देंगे। माली ने उन्हें दूब लेने दी। गणगौर की पूजा करने के बाद लड़कियों ने पूजा पाटा माली को दे दिया और माली ने अपनी मालन को दे दिया। मालन ने पाटा ओबरी में रख दिया। शाम को माली का बेटा आया और बोला – “माँ भूख लगी हैं ” माँ ने कहा -” बेटा , ओबरी ( छोटा कमरा ) में लड़कियों का पूजा पाटा रखा है , उसमें से कुछ खा ले।
माली के बेटे ने कमरा खोलना चाहा लेकिन उससे कमरा नहीं खुला। बहुत कोशिश करने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो उसने गुस्से में दरवाजे पर जोर से लात मारी पर दरवाजा फिर भी नहीं खुला तो माँ बोली बेटा ! तेरे से कमरा नहीं खुलता तो पराई जाई को पता नहीं कैसे ढाबेगा।मालन ने टीकी में से रोली निकाली ,आँखों की कोर से काजल निकाला और नखो में से मेंहदी निकाली। हथेली में लेकर सबको घोला और ओबरी ( छोटा कमरा ) के छींटा दिया तो ओबरी खुल गयी।
औरंगजेब भी नहीं कर पाया था इस मंदिर को खंडित, मधुमक्खियों ने की थी रक्षा
अंदर देखा तो ईशर गणगौर बैठे थे। ईसर जी ने बहुत सुंदर वस्त्र पहने हुए थे और गौरा माँग सँवार रही थी व ओबरी में अन्न के भण्डार भरे पड़े थे। माली के बेटे , मालन को तथा माली को उनके सुन्दर दर्शन हुए।
हे गणगौर माता ! जिस प्रकार माली के परिवार को दर्शन दिए उसी प्रकार सबको दर्शन देना और ईसर जी जैसा भाग और गौर जैसा सुहाग सबको देना। कहानी कहने वाले हुंकार भरने वाले सबको देना और सबको अमर सुहाग का आशीवार्द देना।
गणगौर पूजन विधि Gangaur Pooja
सोभाग्यवती स्त्रिया व कन्याये तालाब से मिट्टी लाकर ईशर गणगौर [ शिव – पार्वती ] की मुर्तिया बनाती हैं | पूजा के लिए हरी दूर्वा , पुष्प , जल लेन के लिए टोली बनाकर सुमधुर गीत गाते हुए सिर पर रख जल भरे लोटे या कलश में दूर्वा व फूल सजाकर लाती हैं | सोभाग्यवती स्त्रिया अखंड सौभाग्य के लिए , कंवारी कन्याये योग्य वर पाने की इच्छा में ईशर गणगौर की बड़ी श्रद्धा से पूजन करती हैं | विवाहित लडकियां ‘ ब्यावले वर्ष ‘ [ विवाह वाले वर्ष ] की गणगौर सभी कन्याओं के साथ धूम धाम के साथ सबसे पहले ईशर – गणगौर का पूजन करती हैं | प्रात: पूजन करती हैं सायंकाल पानी पिलाती हैं बिन्दोरे खिलाती हैं खूब नाच गान करती हैं | छोटी कन्याओ को दूल्हा – दुल्हन बनाती हैं |
सौलह्वे दिन शुभ वार हुआ तो उसी दिन नहीं तो अगले दिन तालाब में और जहाँ तालाब नही हो वहाँ कुए में ससमारोह ढोल नगाड़ों के साथ मंगल गीत गाते हुए ईशर गणगौर की प्रतिमा का विसर्जन करती हैं |
स्त्रियों के ‘ गणगौर ‘त्यौहार के गीत अपनी अलग ही विशेषता रखते हैं | उनमें भगवती गौरीं की प्रार्थना के साथ वसन्त के मास का अनुराग भी झलकता हैं | जब सौभग्यवती स्त्रिया , कन्याये पूजन करने जाती हैं तो किवाड़ी [ दरवाजा ] खोलने की प्रार्थना माता गणगौर से करती हैं |
गणगौर पूजन के गीत Gangaur Geet
गौरि ए गणगौरी माता ! खोल किवाड़ी ‘
बाहर उबी थारी पुजनवाली |
पूजो ए पूजाओ बाई , काई – काई ! मांगों ?
अन्न मांगों , धन मांगों , लाछ मांगों , लछमी ||
जलहर जामी बाबल माँगा रातादेई माई |
कान कुंवर सो बीरों माँगा राई सी भोजाई
ऊंट चढ्यो बहणेंई माँगा चुडला वाली बहणल ||
गणगौर पूजन का गीत
गौर – गौर गणपति ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला गीला , गौर का सोना का टिका ,
टिका दे , टमका दे , राजा रानी बरत करे ,
करता करता , आस आयो वास आयो ,
खेरो खांडो लाडू लायो ,
लाडू ले बीरा न दियो ,बीरो म्हाने चुनड दी
चुनड को में बरत करयो
सन मन सोला , ईसर गोरजा ,
दोनु जौड़ा , जोर ज्वार
रानी पूजे राज में , मैं पूजा सुहाग में ,
रानी को राज घटतो जाई , म्हाखो सुहाग बढतों जाय ,
किडी किडी कीड़ो ल्याय , किडी थारी जात दे ,
जात दे , गुजरात दे , गुजरात्या को पानी
दे दे थम्बा तानी , ताणी का सिघडा, बारी का बुजारा
म्हारो भाई एम्ल्यो खेम्ल्यो ,
सेर सिंघाड़ा ल्यो , पेफ का फूल ल्यो ,
सूरज जी को डोरों ल्यो , सोना को कचोलो ल्यो
गणगौर पूज ल्यो |
सोलह बार गणगौर पूजने के बाद पाटे धोने का गीत गाते हैं |
पाटा धोने का गीत
पाटो धोय पाटो धोय , बीरा की बहन पाटो धो ,
पाटा ऊपर पिलो पान , महे जास्या बीरा की जान ,
जान जास्या , पान खास्या , बीरा न परनार ल्यास्या ,
अली गली में साँप जाय , भाभी थारो बाप जाय ,
अली गली गाय जाय , भाभी तेरी माय जाये ,
दूध में डोरों , म्हारो भाई गोरो ,
खाट पर खाजा , म्हारो भाई राजा ,
थाली में जीरो म्हारो भाई हीरो ,
थाली में हैं , पताशा बीरा करे तमाशा
ए खेले नंदी बैल , ओ पानी कठे जासी राज ,
आधो जासी अली गली ,आधो ईसर न्हासी राज ,
ईसर जी तो न्हाय लिया , गौर बाई न्हासी राज ,
गौरा बाई रे बेटो जायो , भुवा बधाई ल्याई राज ,
अरदा तानो परदा तानो , बंदरवाल बंधाओ राज ,
सार की सुई पाट का धागा , भुआ बाई के कारने भतीजा रहगया नागा ,
नागा नागा काई करो और सिवास्या बागा ,
ओडा खोडो का गीत
ओडो छे खोड़ो छे घुघराए , रानियारे माथे मोर ,
ईसर दास जी , गौरा छे घुघराए रानियारे माथे मोर ….
[ इसी प्रकार पुरे परिवार के सदस्यों का नाम ले ]इसी के साथ आरत्या भी करे |
[ एक बड़े दिये में एक कोढ़ी , सुपारी ,चांदी की अगुठी और एक रुपया डाल कर उसमे थौड़ा पानी डाल कर लोटे के ऊपर रख कर आरती गाये |म्हारी डूंगर चढती सी बेलन जी
म्हारी मालण फुलडा से लाय |
सूरज जी थाको आरत्यों जी
चन्द्रमा जी थाको आरत्यो जी |
ब्रह्मा जी थाको आरत्यो जी
ईसर जी थाको आरत्यो जी
थाका आरतिया में आदर मेलु पादर मेलू
पान की पचास मेलू
पीली पीली मोहरा मेलू , रुपया मेलू
डेड सौ सुपारी मेलू , मोतीडा रा आखा मेलू
राजा जी रो सुवो मेलू , राणी जी री कोयल मेलू
करो न भाया की बहना आरत्यो जी
करो न सायब की गौरी आरत्यो जी