द्रोपदी ने पांडवों की जान, आखिर कैसे मिला द्रोपदी को ये वरदान, जानिए
महाभारत का कथानक अनेक रोचक और प्रेरक प्रसंगों से भरा हुआ है, जो काफी प्रेरणादायी होने के साथ जीवन संघर्षों में इंसान के हौंसले में भी इजाफा करते हैं। इन कथाओं को मानव जीनव में आत्मसात करने से इंसानी जीवन की कई कठिनाइयों का स्वत: अंत हो जाता है। दिल को छू जाने वाला एक ऐसा ही वाक्य महाभारत युद्ध के दौरान हुआ था। महाभारत का युद्ध प्रारंभ हो चुका था और दोनों ओर के योद्धाओं के शव रणभूमि में गिर रहे थे। चारों तरफ जहां तक नजरे जाती थी शवों के ढेर दिखाई दे रहे थे। कौरव और पांडव दोनों पक्षों के सैनिक वीरगति को प्राप्त हो रहे थे, लेकिन इस युद्ध के शुरूआती दौर में कौरव पक्ष को भारी हानि उठाना पड़ रही थी। पांडवों के युद्धकौशल के आगे कौरव सैनिकों के शवों के ढेर लग गए थे।
भीष्म को उलाहना
पांडव सेना जिस तरह मौत का तांडव दिखा रही थी इससे कौरव महारथी चिंता करने लगे। उस वक्त कौरव खेमे के प्रधान सेनापति की कमान पितामह भीष्म के हाथों में थी। कौरव शिविर में महारथी इस बात पर चिंता जता रहे थे की कौरव पक्ष में ज्यादा क्षति हो रही है, ऐसे में दुर्योधन ने पितामह भीष्म को उलाहना दिया और कहा कि पितामह जान-बूझकर पांडवों के लिए नर्म रुख रख रहे हैं।