इस कारण माना जाता है बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ
बद्रीनाथ धाम को देश के चार प्रमुख धामों में से एक माना जाता है। और यह हिमालय पर्वत की श्रंखलाओं में बसे इस पौराणिक और भव्य मंदिर में भगवान श्रीहरी विराजमान है। हिमालय की चोटियों के बीच स्थित इस पावन धाम का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है। हर भक्त की इच्छा होती है कि जीवन में एक बार बद्रीनाथ धाम की यात्रा की जाए। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पर पहुंचने का रास्ता भी काफी दुर्गम है।
आपको बता दे कि भगवान श्रीहरी का यह पवित्र और पावन धाम नर और नारायण नाम की दो पर्वत श्रंखलाओं के बीच स्थित है। श्रीहरी का प्राचीन मंदिर स्वच्छ और बर्फीले जल से प्रवाहमान अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। बद्रीनाथ हिन्दुओं के चार धामों बद्रीनाथ, द्वारिका, जगन्नाथ और रामेश्वरम में से एक है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को मिलाकर उत्तराखंड के चार धाम या छोटे चार धाम कहा जाता है।
बद्रीनाथ को कहा जाता है सृष्टि का आठवां बैकुंठ
बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ माना जाता है। इस धाम में भगवान श्रीहरी छह माह तक योगनिद्रा में लीन रहते हैं और छह माह तक अपने द्वार पर आए भक्तों को दर्शन देते हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थित भगवान बद्रीविशाल की मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी हुई चतुर्भुज अवस्था में और ध्यानमुद्रा में है। मंदिर के पट होने पर भी मंदिर में एक अखंड दीपक प्रज्वलित रहता है। इस देवस्थल का नाम बद्री होना भी प्रकृति से जुड़ा हुआ है। हिमालय पर्वत पर इस जगह जंगली बेरी बहुतायत में पाई जाती है। इन बेरियों की वजह से इस धाम का नाम बद्रीनाथ धाम पड़ा
बदरी वृक्ष की वजह से नाम पड़ा बद्रीनाथ
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु ध्यानयोग में लीन थे तो उस समय हिमालय पर्वत पर अचानक भारी हिमपात होने लगा। श्रीहरी और उनका घर दोनों बर्फ में पूरी तरह डूब गए। भगवान पर आई विपत्ति को देखते हुए देवी लक्ष्मी व्याकुल हो गई और उन्होंने श्रीहरी को बचाने के लिए एक बेर( बदरी) के वृक्ष का रूप धारण कर लिया। देवी लक्ष्मी वृक्ष का रूप धारण कर भारी बर्फबारी को अपने ऊपर लेने लगी। इस तरह से माता लक्ष्मी ध्यानमग्न भगवान विष्णु को बचाने के लिए कठोर तप में जुट गई।
भगवान श्रीहरी का तप जब पूर्ण हुआ तो उन्होंने देखा की देवी लक्ष्मी बर्फ में पूरी तरह से ढंकी हुई है। लक्ष्मीजी की इस तपस्या से प्रसन्न होकर श्रीहरी ने कहा कि हे देवी! तुमने मेरे बराबर तप किया है और बदरी का वृक्ष बनकर तुमने मेरी रक्षा की है इसलिए आज से मुझे बदरी के नाथ बदरीनाथ के नाम से जाना जाएगा और इस धाम में मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी। इसलिए यह पावनधाम बदरीनाथ के नाम से जाना जाता है।