औरंगजेब भी नहीं कर पाया था इस मंदिर को खंडित, मधुमक्खियों ने की थी रक्षा
Jeen Mata Ki Katha जीण माता राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक गांव का नाम है। सीकर से जीण माता गांव 29 किमी दूर है। यहीं पर प्राचीन जीण माता मंदिर है। माता रानी का ये मंदिर हजाराें साल पुराना बताया जाता है। नवरात्र में यहां जीणमाता के दर्शन करने के लिए लाखाें भक्त आते हैं। जीण माता के मंदिर के पास ही पहाड़ की चाेटी पर उनके भार्इ हर्ष भैरव नाथ का मंदिर है।
मंदिर का इतिहास Jeen Mata Tampel History
लोक मान्यताओं के अनुसार जीण का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ। उनके भाई का नाम हर्ष था जो बहुत खुशी से रहते थे। एक बार जीण का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और इसी विवाद के चलते जीन और हर्ष में नाराजगी हो गयी। इसके बाद जीण आरावली के ‘काजल शिखर’ पर पहुँच कर तपस्या करने लगीं। मान्यताओं के अनुसार इसी प्रभाव से वो बाद में देवी रूप में परिवर्तित हुई। यह मंदिर चूना पत्थर और संगमरमर से बना हुआ है। यह मंदिर आठवीं सदी में निर्मित हुआ था।जिन्नमाता राजस्थान, भारत के सीकर जिले में धार्मिक महत्व का एक गांव है। यह दक्षिण में सीकर शहर से 29 किमी की दूरी पर स्थित है। शहर की आबादी 435 9 है जिसमें से 1215 अनुसूचित जाति और 113 एसटी लोग हैं। जिन्न माता (शक्ति की देवी) को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। जीनटाटा का पवित्र मंदिर माना जाता है कि यह एक हजार साल पुराना है। लाखों भक्त यहां नवरात्रि के दौरान चैत्र और अश्विन के महीने में दो बार एक रंगीन त्यौहार के लिए इकट्ठा होते हैं। बड़ी संख्या में आगंतुकों को समायोजित करने के लिए कई धर्मशालाएं हैं। इस मंदिर के करीब ही उसके भाई हर्ष भैरवनाथ मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता:
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता बताया जाता है। माना जाता है कि माता दुर्गा की अवतार है। जीण माता शेखावाटी के यादव, पंडित, राजपूत, अग्रवाल, जांगिड़ आैर मीणा जाति के लाेगाें की कुलदेवी हैं। बड़ी संख्या में जीणमाता के अनुयायी काेलकाता में भी रहते हैं जाे कि माता रानी के दर्शन के लिए आते रहते हैं। जीण माता के मंदिर में बच्चाें के जड़ूले कराने के लिए भी भारी तादाद में भक्तगण आते हैं।
क्या है हर्ष-जीण की कहानी Jeen Mata Ki Katha
जीणमाता (जीण) व हर्ष भाई-बहन हैं। इनका जन्म राजस्थान के चूरू जिले के घांघू में हुआ था। दोनों भाई-बहन में अटूट स्नेह था। किदवंती है कि एक बार जीण और उसकी भाभी (हर्ष की पत्नी) पानी के मटके लेकर घर आ रही थी।
रास्ते में दोनों के बीच शर्त लगी कि हर्ष पहले मटका किसका उतारेगा। जीण को विश्वास था कि उसका उससे अटूट स्नेह करता है कि इसलिए पहले मटका जीण के सिर से उतारेगा।
हर्ष को दोनों की शर्त का पता नहीं था और उसने सामान्य तौर पर अपनी पत्नी के सिर से मटका पहले उतार दिया। इस बात से नाराज होकर जीण गांव घांघू से सीकर जिले में आ गई।
हर्ष को जब पूरी बात पता चली तो वह बहन जीण को मनाने उसके पीछे-पीछे आया। जीण सीकर से थोड़ी दूर खाटूश्यामजी की तरफ अरावली की पहाडिय़ों में पहुंची और पहाडिय़ों में समा गई
बहन को मनाने निकले हर्ष, नहीं मानी तो खुद की भैरों की तपस्या
नाराज होकर वह आरावली के काजल शिखर पर पहुंच कर तपस्या करने लगीं। तपस्या के प्रभाव से राजस्थान के चुरु में ही जीण माता का वास हो गया। अभी तक हर्ष इस विवाद से अनभिज्ञ था। इस शर्त के बारे में जब उन्हें पता चला तो वह अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने उन्हें मनाने काजल शिखर पर पहुंचे और अपनी बहन को घर चलने के लिए कहा लेकिन जीण माता ने घर जाने से मना कर दिया। बहन को वहां पर देख हर्ष भी पहाड़ी पर भैरों की तपस्या करने लगे और उन्होंने भैरो पद प्राप्त कर लिया।
एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है जीण माता का मंदिर
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। माना जाता है कि माता दुर्गा की अवतार है। घने जंगल से घिरा हुआ है यह मंदिर तीन छोटी पहाड़ों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर में संगमरमर का विशाल शिव लिंग और नंदी प्रतिमा आकर्षक है। इस मंदिर के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी कहते हैं की माता का मंदिर 1000 साल पुराना है। लेकिन कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं।
मंदिर काे तोड़ना चाहता था मुगल सम्राट औरंगजेब:
लाेक मान्यता के अनुसार, मुगल सम्राट औरंगजेब ने जीण माता आैर भैराे जी के मंदिर काे तोड़ना चाहता था। लेकिन उसके मंसूबे पूरे नहीं हाे सके। आैरंगजेब ने मंदिर को तोड़ने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। इस बात का पता चलने पर स्थानीय लाेग जीणमाता से प्रार्थना करने लगे। इसके बाद जीणमाता ने अपना चमत्कार दिखाया। मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर टूट पड़ा। मधुमक्खियों के काटने से सेना भाग गई। कहा जाता है कि खुद आैरंगजेब की हालत बहुत गंभीर हो गई तब बादशाह ने अपनी गलती मानकर माता को अखंड ज्योज जलाने का वचन दिया। इसके बाद औरंगजेब की सेहत में सुधार होने लगा।
जीन माता के अनुयायी
माता के मुख्य अनुयायियों में क्षेत्र के महान यादव (अहिर), ब्राह्मण, राजपूत, अग्रवाल, जंजीर और मीनास अोनिन्थ बानियां शामिल हैं। जीन माता, महान यादव (अहिर), अग्रवाल, मीना, शेखावाती राजपूत (शेखावत और राव राजपूत) और राजसी के योद्धा वर्ग के जंगली, के कुलदेवी हैं। जेन माता के अनुयायियों की एक बड़ी संख्या कोलकाता में रहते हैं, जो जनिमा मंदिर पर जा रहे हैं। जो लोग जीन माता को अपनी मां के रूप में आदर करते हैं, उनके परिवार में नर बच्चे के जन्म के लिए प्रार्थना करते हैं और पुत्र के जन्म के बाद ही मंदिर की यात्रा करने का प्रतिज्ञा करते हैं। नर बच्चे के जन्म के बाद पूरे परिवार में जीन माता जी का दौरा किया जाता है और मंदिर के परिसर में पहले बाल काट (राजस्थानी में जादुला के रूप में जाना जाता है) की पेशकश की जाती है। अनुयायियों ने मंदिर में 50 किलो मिठाइयां, जो कि सोआ मणि के नाम से जानी जाती हैं, की पेशकश करती हैं।
जीण माता मंदिर में नवरात्र मेला Jeen Mata Ka Mela
जीण माता मंदिर में हर वर्ष चैत्र सुदी एकम् से नवमी तक और आसोज सुदी एकम् से नवमी में दो मेले लगते है। इसमें लाखों संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जीणमाता मेले के अवसर पर राजस्थान के बाहर से भी लोग आते हैं। मेला लगने पर मंदिर के बाहर सपेरे मस्त होकर बीन बजाते हैं। राजस्थान के सुदुर इलाकों से आये बालकों का झडूला (केश मुण्डाना) उतरवाते हैं। रात्रि जागरण करते हैं और दान देते है। मंदिर में बारहों मास अखण्ड दीप जलता रहता है।
जीण धाम की मर्यादा व पूजा विधि
- जीण माता मन्दिर स्थित पुरी सम्प्रदाय की गद्दी (धुणा) की पूजा पाठ केवल पुरी सम्प्रदाय के साधुओं द्वारा ही किया जाता है।
जो पुजारी जीण माता की पूजा करते हैं, वो पाराशर ब्राह्मण हैं। - जीण माता मन्दिर पुजारियों के लगभग 100 परिवार हैं जिनका बारी-बारी से पूजा का नम्बर आता है।
- पुजारियों का उपन्यन संस्कार होने के बाद विधि विधान से ही पूजा के लिये तैयार किया जाता है।
- पूजा समय के दौरान पुजारी को पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करना होता है व उसका घर जाना पूर्णतया निषेध होता है।
- जीण माता मन्दिर में चढ़ी हुई वस्तु ( कपड़ो, जेवर) का प्रयोग पुजारियों की बहन-बेटियां ही कर सकती हैं। उनकी पत्नियों के लिए निषेध होता है।
- जीण भवानी की सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है। आठ बजे श्रृंगार के बाद आरती होती है व सायं सात बजे आरती होती है। दोनों आरतियों के बाद भोग (चावल) का वितरण होता है।
- माता के मन्दिर में प्रत्येक दिन आरती समयानुसार होती है। चन्द्रग्रहण और सूर्य ग्रहण के समय भी आरती अपने समय पर होती है।
- हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी को विशेष आरती व प्रसाद का वितरण होता है।
- माता के मन्दिर के गर्भ गृह के द्वार (दरवाजे) 24 घंटे खुले रहते हैं। केवल श्रृंगार के समय पर्दा लगाया जाता है।
- हर वर्ष शरद पूर्णिमा को मन्दिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है, जिसमें पुजारियों की बारी बदल जाती है।
हर वर्ष भाद्रपक्ष महीने में शुक्ल पक्ष में श्री मद्देवी भागवत का पाठ व महायज्ञ होता है।